बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- सहलग्नता क्या है? उचित उदाहरण देते हुए इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
अथवा
जीन सहलग्नता के विषय में विस्तार से बताइए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जीन सहलग्नता किसे कहते हैं?
2. सहलग्नता के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
3. सोदाहरण व्याख्या कीजिए किस प्रकार जीन सहलग्नता के कारण मेण्डल के नियमों के अनुरूप वंशागतिक अनुपातों में बदलाव आ जाता है।
4. पूर्ण सहलग्नता को समझाइए।
5. बेटसन और पुन्नेट की परिकल्पना समझाइए।
उत्तर -
सहलग्नता
(Linkage)
सहलग्नता का वर्णन सर्वप्रथम सटन और बावेरी ने सन् 1903 में किया था। इन्होंने कहा कि बहुत से लक्षण है जो कि मोनोहाइब्रिड क्रॉस में मेण्डल के नियम का पालन करते हैं अर्थात् कई गुणसूत्र इन्हें निर्धारित करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि एक गुणसूत्र पर बहुत से जीन पाये जाते हैं। यह जीन्स जो गुणसूत्र पर पाये जाते हैं वह एक पीढ़ी (generation) से दूसरे पीढ़ी (second generation) को जाते हैं। इस परिघटना को सहलगता कहते हैं। सहलग्न ता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है -
सहलग्नता वह क्रिया है जिसके अन्तर्गत सहलग्नता जीन्स एक ही युग्मक के साथ-साथ जाकर पैतृक संयोग में अनुमान से अधिक संख्या में सन्तान प्राप्त करते हैं।
बेटसन, सानडर्स और पुन्नेट (1905) (Bateson, Sounders and Punnete 1905) ने डाइहाइब्रिड क्रॉस के परिणाम कुछ भिन्न प्राप्त किये। जब इन्होंने लैथाइरिस ओडोरेटस (मीठी मटर) के पौधों को जिनमें आरक्त पुष्प और लम्बे पराग अति लाल पुष्प और गोल पराग (round pollen) के मध्य क्रास कराया तो उन्हें मेण्डल के F2 अनुपात से भिन्न परिणाम प्राप्त हुए। उन्होंने आरक्त पुष्प लम्बे पराग, आरक्त पुष्प गोल पराग, लाल पुष्प गोल लम्बे पराग तथा लाल पुष्प गोल पराग के पौधों का F2 में अनुपात 14 : 1 : 1 : 3 का था। जबकि मेण्डल के अनुसार 9: 3 : 3 : 1 होना चाहिए। अतः इस संकरण से यह प्रदर्शित हुआ कि पौधा आरक्त पुष्प लम्बे पराग के साथ और लाल पुष्प, गोल पराग वाले पौधों की आवृत्ति आशा से बहुत अधिक प्राप्त हुई और नये संयोग अर्थात् आरक्त लम्बे व लाल गोल, आशा से कम प्राप्त हुए।
इसका स्पष्टीकरण बेटसन और पुन्नेट ने इस प्रकार दिया कि एक प्रकार में फैक्टर की संहलग्नता थी और दूसरे प्रकार में फैक्टर का प्रतिकर्षण था। दूसरे शब्दों में जब दो प्रभावी युग्म विकल्पी (allels) जैसे P या L एक ही पैतृक पौधे से आते हैं तो वह एक ही युग्म के साथ-साथ संक्रमित हो जाते हैं अर्थात् इनमें सहलग्न्ता होती है। जब ये दोनों प्रभावी युग्म विकल्पी (dominant alleles) दोनों PPLLx ppll पौधों से आते हैं तथा ये पृथक-पृथक युग्मकों में आकर अलग-अलग हो जाते हैं तब इस "क्रिया को repulson कहते हैं। संक्षेप में इसे संहलग्न ता तथा प्रतिकर्षण वाद कहा जाता है।
मॉर्गन (1910-1915) ने ड्रोसोफिला प्रयोग के दौरान इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया। मार्गन और उनके सहयोगी विद्यार्थी मुलर, ब्रिजेज (Muller, Bridges) भी ड्रोसोफिला पर किये जा रहे कार्य में सहयोग कर रहे थे। इनके अनुसार लिंकेज वह क्रिया है जिसमें जीन्स गुणसूत्र के साथ वंशागति करते हैं। सहलग्न ता की मजबूती संहलग्न जीन के बीच की दूरी पर निर्भर करती है। अच्छी तरह ज्ञात है कि सभी जीवों में हजारों जीन्स होते हैं लेकिन गुणसूत्र की संख्या सीमित होती है। जाहिर है कि एक गुणसूत्र में सैकड़ों जीन होते हैं। एक गुणसूत्र पर पाये जाने वाले कुल एलील्स की संख्या को सहलग्न समूह कहते हैं। इसलिए एक जीव में सहलग्न समूहों की संख्या गुणसूत्र की संख्या के बराबर होती है। मार्गन ने कहा कि नान पेरेन्टल कम्बीनेशन, पेरेन्टल कम्बीनेशन के खण्डन तथा पुनर्योजन से उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण -
(A) ड्रोसोफिला में सहलग्नता (Linkage in Drosophila) - एक संकरण ग्रे शरीर और वेस्टीजियल पंखयुक्त वन्य प्रकार ड्रोसोफिला को काला शरीर, लम्बे पंख वाली ड्रोसोफिला से क्रास कराने पर F1 पीढ़ी के हाइब्रिड ग्रे शरीर तथा लम्बे पंखयुक्त होते हैं। जब इनका बैक क्रास दोहरे अप्रभावी तथा मादा मक्खी से कराते हैं तो दो प्रकार के मक्खी प्राप्त होते हैं- ग्रे शरीर और वेस्टीजियल पंख तथा काला शरीर और लम्बे पंखयुक्त |
केवल पैतृक संयोग प्राप्त होता है और जीन्स अलग नहीं होते हैं। यह पूर्ण सहलग्न ता दिखाता है।
(B) मक्का में सहलग्नता (Linkage in Maize) - रंगदार भरे हुए बीज वाले मक्का को पौधों का रंगहीन व सिकुड़े हुए बीज वाले पौधों से संकरण करने पर F, पीढ़ी के सभी पौधे रंगदार तथा भरे हुए हैं। किन्तु टेस्ट क्रास में F, के मादा संकरों (hybrids) का रंगहीन व सिकुड़े बीज वाले पौधों से परागण कराने पर निम्न प्रकार के बीज उत्पन्न होते हैं।-
(a) रंगदार भरे हुए
(b) रंगदार सिकुड़े हुए - 96%
(c) रंगहीन सिकुड़े हुए
(d) रंगहीन भरे हुए - 3.6%
इसमें जनकीय संयोग नये संयोगों से कहीं अधिक है इससे स्पष्ट है कि ये लक्षण एक-दूसरे से सहलग्न है। इनके जीन एक ही गुणसूत्र पर स्थित हैं तथा 3.6% जीवों में यह विनिमय द्वारा एक-दूसरे से अलग हो सके। यह अपूर्ण सहलग्नता का उदाहरण है।
(Types of Linkage)
सहलग्नता दो प्रकार की होती है -
पूर्ण सहलग्नता (Complete Linkage) - जब गुणसूत्र पर स्थित जीन्स वंशागति के समय एक-दूसरे से अलग नहीं होते तो इसे पूर्ण सहलग्नता कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप केवल पैतृक संयोग बनते हैं तथा नये संयोग नहीं बनते। पूर्ण सहलग्नतां अत्यन्त कम होती है। इसका अध्ययन ड्रोसोफिला में किया गया है।
उदाहरण (Example) - स्लेटी (gray) रंग के शरीर या अल्पविकसित पंख वाली जंगली ड्रोसोफिला का मैथुन जब काले शरीर तथा लम्बे पंखों वाली ड्रोसोफिला के साथ किया गया तो F1 पीढ़ी के समस्त जन्तुओं का शरीर स्लेटी रंग का तथा उनके पंख लम्बे एवं पूर्व विकसित थे। जब यह F1 पीढ़ी का नर संकर ड्रोसोफिला अप्रभावी मादा के साथ संकरण करता है तो केवल दो प्रकार के जन्तु बराबर संख्या में बनते हैं। इस संकरण में केवल पैतृक संयोग बनते हैं और जीन्स अलग नहीं होते, अतः यह पूर्ण सहलग्नता कहलाती है।
नर ड्रोसोफिल में पूर्ण सहलग्नता
2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage) - यह क्रिया जिसमें सहलग्न जीन्स का विनिमय होता रहता है, अपूर्ण सहलग्नता कहलाती है।
सहलग्ता का महत्त्व (Importance of Linkage) -
1. सहलग्नता ब्रीडर को इच्छानुसार परिणाम नहीं प्राप्त करने देती है अर्थात् ब्रीडर इसके कारण इच्छानुसार परिणाम नहीं पा सकता।
2. सहलग्न लक्षण पीढ़ियों तक बने रहते हैं क्योंकि यह संयोग की क्रिया को रोकता है अर्थात् सहलग्नता के कारण सभी सम्भावित लक्षण सन्तान में नहीं आ पाते हैं।.
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- प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।